मेरा चाँद जमीन पर
साँझ ढले जब,चाँद जमीं पर आता है,
नशा एक खुमारी बन,दिल पर छा जाता है ,
मिलता सुकूँ रूह को अजीब सा,
जब पास मेरे वो आता है,
धीमा-धीमा सा उसकी खुसबू का असर ,
मादकता बन मेरे जेहन में उतर जाता है,
वो अपने नीलगगन से नैनो से ,
मुझको मदहोश कर जाता है,
काली नागिन सी जुल्फों का घनघोर अँधेरा ,
फैले तो दिल रोशन हो जाता है,
वो उसके अधरों की सुनहरी मुस्कान ,
देख हाल मेरा बेहाल हो जाता है,
लम्हा-लम्हा, क्षण-क्षण , बातो में उसकी ,
सवेरा बन 'शब्' को निगल जाता है,,
वाह बहुत खूबसूरत.
ReplyDeleteरामराम.
वाह ...एक खूबसूरत कविता
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeletegood keep going !
ReplyDeleteवाह बहुत खूबसूरत.
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत.....!!
ReplyDeleteमिलता सुकूँ रूह को अजीब सा,
ReplyDeleteजब पास मेरे वो आता है,
very nice presentation of feelings .
बहुत खूब
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर रचना की प्रविष्टि कल रविवार ब्लॉग प्रसारण http://www.blogger.com/blogger.g?blogID=5411992748877508354#allposts पर भी ... कृपया पधारें
ReplyDeleteआभार
Deletebahut khub
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti !
ReplyDeleteवाह मलिक जी बहुत बेहतरीन कविता......
ReplyDeleteहुस्न की तारीफ़ और आशिक का धड़कता दिल........खुबसूरत.......आच लगा आपके ब्लॉग पर आकर।
ReplyDeleteखुबसूरत अहसास और अच्छे अल्फाज़ संजोय हो
ReplyDeleteवाह बहुत खूबसूरत....!!
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
राज चौहान
http://rajkumarchuhan.blogspot.in
कोमल भाव सुन्दर कविता खूब .....
ReplyDeletewah bahut badhiya rumaniyat se bharpoor rachna !!
ReplyDeleteमिलता सुकूँ रूह को अजीब सा,
ReplyDeleteजब पास मेरे वो आता है, ati sundar ......