Friday, July 12, 2013

रल्धू की सुसराड

आज कुछ हास्य पर लिखने का दिल हुआ, जो दिल में आया लिख रहा हूँ, कृप्या इसे एक हास्य के तोर पर ही ले आभार ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

रल्धु कू आया ख्वाब ,

अक सुसराड में पाड़ रहा वो कबाब,

आँख खुली जब तडके ,

भाज लिया वो अडके ,

एक किलो ली मिठाई ,

आधा किलो जलेबी भी तुलवाई ,

जाकै गाड्डी राम राम,

बोला हम पहुचे धुर धाम ,

सासू थी उसकी कुछ छोली ,

तपाक से नु बोली ,

करण के आया तू हड ,

तेरी बहू तो तेरे घर गड ,

सासू मेरी ,गोर त सुन ल बात ,

छोरी तेरी, मारे मेरे घुस्से लात ,

सासू कु नु सुन के आया गुस्सा ,

मारा घुमा के एक जोरदार घुस्सा ,

रलधु कु कुछ समझ न आया,

बेदम होके उसने गस खाया ,

खुली जो आँख ,

रलधु को होश आया,

तभी घर में सुसरा भी आया,

उसने भी एक सुतरा खूंटा चिपकाया,

भाजन की जो जुगत लगाई ,

साम्ही तै साली की संडल आई ,

अब ना रलधु कु कुछ दिया सुझाई,

भिड़ा तिगडम अपनी जान बचाई ,

देख भाल कै जाइयो सुसराड मै ,

रलधु न या बात सबकू समझाई ...........................


मॊलिक एवं अप्रकाशित






13 comments:

  1. bade bure hal hain .nice presentation .

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  2. सुंदर प्रयास...

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  3. बेचारा रल्धु का हाल बुरा..... अच्छी हास्य रचना ...

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  4. रल्दू को ससुराड कबाव पाडण का च्याव चढ्या था त ससुराड के तो योही लाड हौंवैं सै.:)

    रामराम.

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  5. मनोरंजक हास्य....बढ़िया रचना .....शुभकामनाएं....


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  6. बहुत मज़ेदार प्रस्तुति...

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  7. मनोरंजक हास्य रचना.....बहुत बढ़िया

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  8. हास्य की बढ़िया कविता
    बेहतरीन प्रयास
    बहुत खूब
    बधाई

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