Friday, July 5, 2013

मेरा चाँद जमीन पर

साँझ ढले जब,चाँद जमीं पर आता है,

नशा एक खुमारी बन,दिल पर छा जाता है ,


मिलता सुकूँ रूह को अजीब सा,

जब पास मेरे वो आता है,


धीमा-धीमा सा उसकी खुसबू का असर ,

मादकता बन मेरे जेहन में उतर जाता है,


वो अपने नीलगगन से नैनो से ,

मुझको मदहोश कर जाता है,


काली नागिन सी जुल्फों का घनघोर अँधेरा ,

फैले तो दिल रोशन हो जाता है,


वो उसके अधरों की सुनहरी मुस्कान ,

देख हाल मेरा बेहाल हो जाता है, 


लम्हा-लम्हा, क्षण-क्षण , बातो में उसकी ,

सवेरा बन 'शब्' को निगल जाता है,,






20 comments:

  1. वाह बहुत खूबसूरत.

    रामराम.

    ReplyDelete
  2. वाह ...एक खूबसूरत कविता

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  4. वाह बहुत खूबसूरत.

    ReplyDelete
  5. बहुत खुबसूरत.....!!

    ReplyDelete
  6. मिलता सुकूँ रूह को अजीब सा,
    जब पास मेरे वो आता है,
    very nice presentation of feelings .

    ReplyDelete
  7. आपकी इस सुन्दर रचना की प्रविष्टि कल रविवार ब्लॉग प्रसारण http://www.blogger.com/blogger.g?blogID=5411992748877508354#allposts पर भी ... कृपया पधारें

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  9. वाह मलिक जी बहुत बेहतरीन कविता......

    ReplyDelete
  10. हुस्न की तारीफ़ और आशिक का धड़कता दिल........खुबसूरत.......आच लगा आपके ब्लॉग पर आकर।

    ReplyDelete
  11. खुबसूरत अहसास और अच्छे अल्फाज़ संजोय हो

    ReplyDelete
  12. वाह बहुत खूबसूरत....!!


    यहाँ भी पधारे
    राज चौहान
    http://rajkumarchuhan.blogspot.in

    ReplyDelete
  13. कोमल भाव सुन्दर कविता खूब .....

    ReplyDelete
  14. wah bahut badhiya rumaniyat se bharpoor rachna !!

    ReplyDelete
  15. मिलता सुकूँ रूह को अजीब सा,
    जब पास मेरे वो आता है, ati sundar ......

    ReplyDelete