Friday, June 28, 2013

ऐसा कियो हुआ ?

मंज़र आज भी वही है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,नजरो के सामने से हटता ही नही | बार बार बस एक ही टीश होती है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, दिल में की ऐसा कियो हुआ । ,,,,,,,,,,,,इतनी तबाही सोच कर भी रूह कांप उठती है ।,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, सोते जागते बस एक ही सवाल दिलो दिमाग पर छाया रहता है।,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ऐसा कियो हुआ ?,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, सवाल का बस एक ही जवाब मिलता है,गुनहगार हम खुद  है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,। इस स्थिति , इस आपदा को निमंत्रण हमारा खुद का दिया हुआ है।,,,,,,,,,,,,,,,,, लेकिन हम फिर भी ये ही कहते है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,कि हे भगवान ये तूने क्या किया ?,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, तेरे दर पर आये थे, तूने भी रक्षा नही की ? मनुष्य का स्वाभाव ही ऐसा है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, हमेशा अपने किये हुए को दुसरे पर प्रत्यारोपित करना,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, भगवान को भी नही बक्शा  ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, जब हम इतने समय से उसकी बनायीं हुई प्रकृति का विनाश करने पर तुले थे,, ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, तब तो नही सोचा की ऐसा भी हो सकता है,,,,,,,,,,,,,,, अब सारा दोष भगवान को दे रहे है,,,, ,,,,,,, ,,,,,,,,,,, जब पहाड़ो का सीना चीरकर रास्ते , सुरंग , पुल बनाये, ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, नदियों का रास्ता रोककर बांध बनाये,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, कब तक प्रकृति अपना विनाश सहन करती ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, कोई सबक तो वो हमें जरुर देती ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ताकि हम दोबारा ऐसा न करे,,,,,,,,,,,,,,, प्रत्येक क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,प्रकृति भी उससे अछूती नही ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,प्रत्येक काम की अधिकता नुकसान दायक होती है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,प्रभु को दोष देने से कुछ नही होगा ,,,,,,,,,,,,,,,,खुद की सोच को बदलो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, प्रकृति को कम से कम नुकसान हो,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ये हमारी सोच होनी चाहिए ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  

11 comments:

  1. सही है, अति तो हर चीज की बुरी ही होती है.

    रामराम.

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  2. बिल्कुल सार्थक आलेख...

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  3. बिलकुल सही बात है प्रकृति का विनाश हमारा खुद का विनाश है

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  4. वाह . बहुत उम्दा

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  5. सही कहा आपने सोच अच्छी हो तो सब अच्छा होता है ..

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  6. प्रकृति को कम से कम नुकसान हो ये हमारी सोच होनी चाहिए .....सही कहा आपने

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  7. सही कहा अवैध भवन निर्माण,नदी काटकर रोड़,सड़क,होटल बनाना आखिर प्रकृति कब तक सहती..... अफ़सोस निर्दोष जान से जा रहें हैं.

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  8. आप सभी का बहुत आभार

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  9. बहुत खूब | बधाई

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  10. अति का अंत जरूरी है.. सार्थक

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