Tuesday, June 18, 2013

वो गुमनाम ख़त

हर रोज़ एक पैगाम आता है,

ख़त वो बेनाम आता है ,


मिलने की  ख्वाहिश लिखते है हमसे ,

मिलने से पर दिल कतराता है,


सोची समझी सी साजिश लगती है,

किसी का कोई पुराना ख्वाब लगता है,


बन्दिसो में जीने की आदत है शायद उसको ,

तभी तो वो गुमनाम ख़त मेरे नाम लिखता है,


उलझी हुई बाते होती है,

डगमगाते से अल्फाज लिखता है,


जुस्तजू उसकी हाल ए दिल बयाँ करती है,

बहका हुआ उसका, अंदाज ए बयाँ लगता है,


अब तो आदत सी हो गयी यारो ,

ख़त का रोज़,  इंतजार रहता  है,




4 comments:

  1. अब तो आदत सी हो गयी यारो
    ख़त का रोज़, इंतज़ार रहता है !

    शुभकामनायें !

    PS: Pl remove word verification immediately ..

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  2. धन्यवाद , आप हमेशा ऐसे ही मार्गदर्शन रहे , ये संसोधन अभी कर देता हु, आभार तहे दिल से,

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  3. इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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