कोई बता दे पता
मुहब्बत रहती कहाँ
ढूंढ़ रहा हूँ मैं
वर्षो से उसका पता
दिल की बेकरारी है
राते जग कर गुजारी हैं
तिस्नगी को भी बढाया
तब भी ना पता लग पाया
सूरज, तारो, चाँद, तारो से पूछा
घूमते हो तुम पूरे जहाँ में
कभी कही किसी मोड़ पर
मिला तुम्हे मुहब्बत का पता
पर्वत,मोसम,पेड और पन्छी
धुप ,छाव,सर्दी और गर्मी
सबसे मैंने बस यही पूछा
बताओ मुहब्बत रहती कहाँ
धीमे धीमे होले होले
सब मंद मंद मुस्काते है
लगता है मालूम है इनको
किन्तु मुझको नहीं बताते है
सरिता , सागर और तालाब
सबके गया किनारों पर
वही पवन ने फुसफुसाकर
मुझको बस इतना कहाँ
मुहब्बत मिलती नहीं
बस हो जाती है
दिल को एक पल में
दीवाना कर जाती है
तब मेरे दिल ने हँस कर कहा
जिसका तू ढूंढ़ रहा था पता
वो रहती हरदम मुझमे
कभी अंदर आने की जेहमत उठा
डॉ शौर्य मलिक
मुहब्बत रहती कहाँ
ढूंढ़ रहा हूँ मैं
वर्षो से उसका पता
दिल की बेकरारी है
राते जग कर गुजारी हैं
तिस्नगी को भी बढाया
तब भी ना पता लग पाया
सूरज, तारो, चाँद, तारो से पूछा
घूमते हो तुम पूरे जहाँ में
कभी कही किसी मोड़ पर
मिला तुम्हे मुहब्बत का पता
पर्वत,मोसम,पेड और पन्छी
धुप ,छाव,सर्दी और गर्मी
सबसे मैंने बस यही पूछा
बताओ मुहब्बत रहती कहाँ
धीमे धीमे होले होले
सब मंद मंद मुस्काते है
लगता है मालूम है इनको
किन्तु मुझको नहीं बताते है
सरिता , सागर और तालाब
सबके गया किनारों पर
वही पवन ने फुसफुसाकर
मुझको बस इतना कहाँ
मुहब्बत मिलती नहीं
बस हो जाती है
दिल को एक पल में
दीवाना कर जाती है
तब मेरे दिल ने हँस कर कहा
जिसका तू ढूंढ़ रहा था पता
वो रहती हरदम मुझमे
कभी अंदर आने की जेहमत उठा
डॉ शौर्य मलिक
कविता पढ़ते समय जेहन में वही बात थी ,जो आपने अंत में कही है
ReplyDeleteअब कमेंट क्या करूँ
हार्दिक शुभकामनायें
बिल्कुल सही कहा......
ReplyDeleteमुहब्बत की नहीं जाती ...हो जाती है ...
वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeletebehtreen...
ReplyDeleteबेहतरीन और लाजवाब ।
ReplyDeleteमुहब्बत हो जाती है ... ये दर्द ले के आती है ... खुशियां दे जाती है ...
ReplyDeleteसही उदगार ...
ReplyDeleteमंगलकामनाएं !!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई.
ReplyDeleteकाफी उम्दा रचना....बधाई...
ReplyDeleteनयी रचना
"अनसुलझी पहेली"
आभार