बहुत दिनों से इस गजल को तलाश रहा था , आज ये मिल गयी,बहुत प्यारी गजल है, आप एक बार इस पर नजर डाले,,, अदम गोंडवी जी की एक बेहतरीन गजल है ये
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िए
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए
ग़र ग़लतियाँ बाबर की थी; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए
छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ़
दोस्त मेरे मजहबी नग़मात को मत छेड़िए
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िए
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए
ग़र ग़लतियाँ बाबर की थी; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए
छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ़
दोस्त मेरे मजहबी नग़मात को मत छेड़िए
बहुत ही बेहतरीन गजल है..
ReplyDelete:-)
ghazal k liye mubarakbade'n bhai....behtrin gazal hai
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल है यह. . . .
ReplyDeleteसुभानाल्लाह बहुत ही खुबसूरत |
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार इस ग़ज़ल को साझा करने के लिए
ReplyDeleteइस खुबसूरत ग़ज़ल को साझा करने के लिए
ReplyDeleteVery nice words I like it.......
ReplyDeleteVery nice words I like it.......
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