Thursday, September 12, 2013

दर्द

आज काफी दिनों के बाद ब्लॉग पर आया हूँ, मेरा शहर भी दंगो की चपेट में था , जो कुछ भी इन दंगो में हुआ है, मैंने तो बस इंसानियत का क़त्ल होते देखा है , दिल बहुत दुखी है , एक गजल कहने की कोशिश की है जो एक इन्सान दंगो से पीड़ित है उसके मन की व्यथा को बताने की कोशिश की है, मेरे गुरु श्री नीरज गोस्वामी जी के पारस जैसे हाथो ने इसे सवारां है , जो गलतियाँ मुझसे हुई थी उसे उन्होंने दूर किया है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

सब से छुप कर रहता था 

हर आहट पर डरता था 


बाहर से था शेर मगर 

खोफ मुझे भी लगता था 


भाई के हाथो क्यूँ कर 

भाई का घर जलता था 


भूल गया था तू शायद 

दर्द तिरे मैं सहता था 


एक धोखा था प्यार यहाँ 

खून तभी तो बहता था 






10 comments:

  1. कम शब्दों में बहुत ही बड़ी बात कह दी भाई आपने।
    सुन्दर और अनमोल ग़ज़ल हेतु,
    बधाई

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  2. वाह बहुत ही सुन्दरता से कही है आपने |

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  3. wedna se bharpoor ....par haiwano ko kahan samajh me aata hai ...

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  4. चिंगारी की तलाश रहती है दंगे करने वालों को ..जो हुआ बेहद दुखद था.
    छोटे बहर की ग़ज़ल में आप ने दर्द समेट मन की बात कह दी.नीरज जी के कुशल हाथों में जा कर यह और बेहतर हो गयी है.

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  5. वह भाई जी वाह ...
    बेहतरीन अभिव्यक्ति है !

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  6. बहुत खुबसूरत भावमय रचना !!

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  7. दंगा फ़ैलाने वालो की कोई जात नहीं होती न रिश्ते......

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  8. भावपूर्ण प्रस्तुति...

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