Friday, May 3, 2013

साहित्य और सिनेमा

                                                             साहित्य और सिनेमा


          साहित्य और सिनेमा दोनों का आपस में बहुत गहरा रिश्ता है, बिना साहित्य के हम लोग सिनेमा की कल्पना भी नही कर सकते,लेकिन आजकल फूहड़ता भरा साहित्य और उसी तरह का सिनेमा देखने को बहुतायत में मिलता है,एक दौर था जब अच्छा साहित्य होता था , उसी तरह का सिनेमा में हमें देखने को मिलता था, एक सन्देश होता था , गीतों में भी शब्दों और भावो का बहुत अच्छा प्रयोग होता था, संगीत को सुनकर दिल को सुकून मिलता था,एक बड़ा रसीलापन गीतों में, सिनेमा में होता था,लेकिन आज न तो कही अच्छा  संगीत है, न ही शब्दों को महत्व दिया जाता है,बस उल्टा सीधा जो भी लिख दिया उसी को तड़क भड़क के साथ फूहड़ता से पेश कर दिया जाता है,अगर मैं कहू की ये गलती सिनेमा वालो की है, तो मैं बिलकुल गलत हू , वो लोग तो उसे पेश करते जो हम सुनना और देखना पसंद करते है ,जो हमारी मानसिकता है,वो बहुत अच्छे  से उसे पढ़ लेते है, और उसे हमारे सामने पेश कर देते है,वो लोग आज के युवा को ध्यान में रख कर सिनेमा बनाते है,और उसको वो मनोरंजन का नाम देते है,मनोरंजन के नाम पर वो सब हमारी मानसिकता को हमारे संस्कारो को कुण्ठित कर रहे है,कोई भी सिनेमा हो हम परिवार के साथ बैठकर नही देख सकते,तब हमें शर्म  आती है,लेकिन जब वही सब अकेले में देखते है तो मज़ा आता है,ये दुर्भाग्य ही है की आज हम इतनी विकृत मानसिकता के साथ जिन्दगी जी रहे है,मात्र  एक सन्देश देना चाहता था , कितना भी इस बारे में लिखू वो कम ही होगा,लेकिन अभी बात अधूरी है,अगर हम कुछ कर सकते है तो वो है साहित्य को अच्छा बना सके,उसके  लिए हमें पूर्ण कोशिश करनी होगी की हम जो भी लिखे वो विकृत ना  हो ,मतलब ये है कि अच्छा लिखे, संदेशपुरक लिखे ,कभी तो , कही से, किसी को तो शुरुवात करनी होगी , दुसरो से अपेक्षा करने से पहले खुद ही शुरुवात कर दे,धीरे धीरे ही सही शायद कुछ बदलाव तो आये,बस अब और कुछ नही कहूँगा , अगर किसी को मेरा लेख बुरा लगा हो या किसी को मेरी बाते सत्य प्रतीत न होती हो,तो मैं उनसे माफ़ी चाहता हू । 


                                                                                                 

2 comments:

  1. दुसरो से अपेक्षा करने से पहले खुद ही शुरुवात कर दे,धीरे धीरे ही सही शायद कुछ बदलाव तो आये,sahi bat hai .badlaaw jaruri hai .......par sabhi bhage jaa rahe hain .....jab tak samajh me aaye bahut der ho chuki hoti hai .....

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    1. धन्यवाद डॉ निशा , जी हा सब ये सोचते है की सुरुवात कोन करेगा ,हमे खुद से ही सुरु करना होगा,तब और किसी से उम्मीद की जा सकती है,

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