हमें मालूम ना था
तबाही का सिलसिला ,
यूँ शुरू होगा ,
हमें मालूम न था ,
मन्नत मांगी थी,
जिस बारिश की हमने ,
उसके आने के बाद,
मंज़र ये होगा,
हमें मालूम न था ,
खुद भगवान भी बह जायेंगे,
धारा में जल की ,
बर्बर और रोद्र रूप ,
ऐसा प्रकृति का होगा,
हमें मालूम ना था,
गुजारिश करते है,
उस रब से,
फिर ऐसा मंजर ना हो कभी ,
हमारी गलतियों का ,
ऐसा अंजाम होगा ,
हमें मालूम ना था,,,,,,,,,,,,,,
किसे मालूम था.....
ReplyDeleteशायद खुद खुदा भी पशेमां होगा
:-(
अनु
बिलकुल सही कहा अनु जी
Deleteप्रकृति के इस रौद्र रूप और ऐसी तबाही का अंदाज़ा किसी को न था. अच्छा लिखा है, शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteआभार डॉ शबनम जी
Deleteकुदरत के इस कहर के शिकार लोगों और उनके परिवारों के प्रति हार्दिक संवेदना .. आपकी यह उत्कृष्ट रचना कल दिनांक २२ जून २०१३ को http://blogprasaran.blogspot.in/ ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है , कृपया पधारें व औरों को भी पढ़े...
ReplyDeleteआपका बहुत आभार शालिनी जी
Deleteहमारी गलतियो का ऐसा अंजाम होगा हमें मालूम न था ....बहुत अच्छा लिखा है ....ये ही विडंबना है,की हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते समय उसके प्रतिरोध को याद नहीं रखते ...
ReplyDeleteआभार पारुल जी
Deletesarthak rachna
ReplyDeleteआभार पूनम जी
Deleteबहुत ही सुन्दर ....और सचेत करनेवाले विचार... जागो रे !
ReplyDeleteआभार ओम जी
Deleteबहुत ही सुन्दर ....और सचेत करनेवाले विचार... जागो रे !
ReplyDeleteसामयिक ..भाव पूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार ज्योति कलश जी
Deleteसच कहा, हमें कहाँ मालूम था ।
ReplyDeleteआभार आशा जी
Deleteआपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !
ReplyDeleteआपका बहुत आभार संजय जी
Deleteसही कहा किसे मालूम था कि तबाही का ऐसा मंजर होगा ....
ReplyDeleteआपका बहुत आभार रंजना जी
Deleteबहुत ही सुन्दर . सचेत करनेवाले विचार. आभार
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