गजल कैसे लिखते है, उन्ही बातो को आज गजल के रूप में कहने का एक असफल प्रयास कर रहा हूँ,
बहर २२२२२२२२
गर मतले के बाद हो मतला
वो हुस्ने मतला बन जाता है
बहरो पर होती है गजले
तभी तो गायक गा पाता है
ऊला में होती आधी बात
शानी ही पूरी करवाता है
आता जब शायर का नाम
शेर वो मक्ता बन जाता है
बहर २२२२२२२२
मिसरा जो पहले आता है
मिसरा ऐ ऊला कहलाता है
मिसरा ऐ ऊला कहलाता है
गर मतले के बाद हो मतला
वो हुस्ने मतला बन जाता है
बहरो पर होती है गजले
तभी तो गायक गा पाता है
ऊला में होती आधी बात
शानी ही पूरी करवाता है
आता जब शायर का नाम
शेर वो मक्ता बन जाता है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteसफल् प्रयास..्वाह
ReplyDeleteवाह डॉ साहब
ReplyDeleteआपने तो ग़ज़ल के लहजे में ग़ज़ल उतर के रख दी
क्या कहने वाह
जय हो...हमें तो आज तक ग़ज़ल लिखना समझ नहीं आया मियां :)...हम तो अनाड़ी ही रह गए |
ReplyDeleteबहुत ही शानदार.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत बहुत बेहतरीन!!!
ReplyDeletekya kahne .....ankho aur safal prayas
ReplyDeleteबहुत खूब ..आप तो उस्ताद बन गए ..शोर्य जी
ReplyDeleteवा वाह वा वाह ...
ReplyDeleteनया अंदाज़ आपका !
शुक्रिया भाई जी !
kyaa baat hai ...
ReplyDeletegazal ki puri paribhasha likh di aapne ....
Sunder :-)
ReplyDeleteवाह....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया......
अच्छा प्रयोग है..
अनु
सुन्दर
ReplyDeleteआभार !
सुन्दर प्रयास ..आपकी इस उत्कृष्ट रचना का प्रसारण कल रविवार, दिनांक 25/08/2013 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in/ पर भी .. कृपया पधारें !
ReplyDeleteबहुत बहुत बेहतरीन!!!....शोर्य जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..अच्छा प्रयोग है..शोर्य जी
ReplyDeleteबहुत खूब.....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
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