वो गुमनाम ख़त
हर रोज़ एक पैगाम आता है,
ख़त वो बेनाम आता है ,
मिलने की ख्वाहिश लिखते है हमसे ,
मिलने से पर दिल कतराता है,
सोची समझी सी साजिश लगती है,
किसी का कोई पुराना ख्वाब लगता है,
बन्दिसो में जीने की आदत है शायद उसको ,
तभी तो वो गुमनाम ख़त मेरे नाम लिखता है,
उलझी हुई बाते होती है,
डगमगाते से अल्फाज लिखता है,
जुस्तजू उसकी हाल ए दिल बयाँ करती है,
बहका हुआ उसका, अंदाज ए बयाँ लगता है,
अब तो आदत सी हो गयी यारो ,
ख़त का रोज़, इंतजार रहता है,
अब तो आदत सी हो गयी यारो
ReplyDeleteख़त का रोज़, इंतज़ार रहता है !
शुभकामनायें !
PS: Pl remove word verification immediately ..
धन्यवाद , आप हमेशा ऐसे ही मार्गदर्शन रहे , ये संसोधन अभी कर देता हु, आभार तहे दिल से,
ReplyDeleteइन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
ReplyDeleteआभार संजय जी
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