मैं मेरी तनहाहियो में अक्सर अकेला रहता हूँ ,
तुम चले आओगे अक्सर ये सोचता रहता हूँ,
बिछड़े हुओ की खातिर अक्सर अक्श बहाता रहता हूँ,
मत समझो मुझको दीवाना मैं प्यार में पागल रहता हूँ,
चलते हुए बहाव की तरह हर पल लिखता रहता हूँ,
जलते हुए दिए की तरह हर पल जलता रहता हूँ,
हँसते हुए जिन्दगी को बस यू ही जीता रहता हूँ ,
राज जो उनके है आज भी दिल में छुपाये फिरता हूँ,
मैं तो अलबेला हूँ लहरों पर चलता रहता हूँ,
डर नही है कुछ खोने का मैं तो सब लुटाये फिरता हूँ,
यह ऐसे भी बन सकता था !
ReplyDeleteजाने क्यूँ तन्हाई में , मैं निपट अकेला रहता हूँ !
बिछड़ किसी दिन जाओगे तुम,यही सोंचता रहता हूँ !
भाव अच्छे हैं , कोशिश करते रहो ...मंगल कामनाएं लेखनी को !
सस्नेह !
आपका बहुत आभार आप मेरे ब्लॉग पर आये ,मार्गदर्शन के लिए बहुत शुक्रिया , आपका आशीष और स्नेह मुझे मिलता रहेगा तो मुझे अपार ख़ुशी होगी ,कोशिश जारी रखूँगा लिखने की , जहा गलतियाँ करू उन्हें आप सुधारे , आभार ..........
Deleteप्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeleteशब्दों की मुस्कुराहट पर ….माँ तुम्हारे लिए हर पंक्ति छोटी है
शब्दों की मुस्कुराहट पर ….सुख दुःख इसी का नाम जिंदगी है :)
आपका बहुत आभार संजय जी ,
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