वो पुरानी खिड़की
वो पुरानी खिड़की आज भी है,
जिसको देखा करते थे सरेशाम ,
लेकिन आज वहाँ तन्हाई है,
जहाँ कल प्यारा सा मुखड़ा होता था,
अब तो उस गली से गुजरना भी नागवारा है,
उसकी यादों का आज भी दिल में बसेरा है,
ना जाने कियो वो हमें ,
जिन्दगी ए मझदार में अकेला छोड़ गये ,
वो पुरानी खिड़की आज भी है,
जिसको देखा करते थे सरेशाम ,
जिसकी यादों में जागते थे रात भर ,
अब उसकी यादों में रोते है रात भर ,
मुकम्मल की थी जिसने जिन्दगी हमारी,
अब वो ही अधूरा छोड़ कर चले गये ,
जिन्दगी तो उनके साथ चली गयी,
अब तो बस इंतजार अलविदा कहने का है,
अब और किया कहू ,
कुछ न बाकी रहा ,
वो पुरानी खिड़की आज भी है,
जिसको देखा करते थे सरेशाम ...........................
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