काफी दिनों के बाद ब्लॉग पर आया हूँ , आप सभी से दूर रहने के लिए माफ़ी चाहता हूँ, कोशिश करूँगा कि अब लगातार आप लोगो के सम्पर्क में रहूँ , एक छोटी सी गजल कहने की कोशिश की है, जो गलतियाँ हो कृप्या मुझे बताये ,आप सभी के कमेंट्स का इंतजार रहेगा
दर्द सभी ने कुछ झेले है
जिन्दा वो, जो अलबेले है
बिकता है अंगूर यहाँ तो
पर हम तो यारो केले है
अनपढ़ बनते राजा देखो
खेल अजब किस्मत खेले है
प्यार,भरोसा ,रिश्तो के अब
लगते रोज़ यहाँ मेले है
चाहो जैसे तोड़ो वैसे
हम तो मिटटी के ढेले है
डॉ शौर्य मलिक
दर्द सभी ने कुछ झेले है
जिन्दा वो, जो अलबेले है
बिकता है अंगूर यहाँ तो
पर हम तो यारो केले है
अनपढ़ बनते राजा देखो
खेल अजब किस्मत खेले है
प्यार,भरोसा ,रिश्तो के अब
लगते रोज़ यहाँ मेले है
चाहो जैसे तोड़ो वैसे
हम तो मिटटी के ढेले है
डॉ शौर्य मलिक
बहुत बेहतरीन रचना...
ReplyDelete:-)
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबधाई
बहुत सुंदर एवं सार्थक !
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुन्दर |
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