आज काफी दिनों के बाद ब्लॉग पर आया हूँ, मेरा शहर भी दंगो की चपेट में था , जो कुछ भी इन दंगो में हुआ है, मैंने तो बस इंसानियत का क़त्ल होते देखा है , दिल बहुत दुखी है , एक गजल कहने की कोशिश की है जो एक इन्सान दंगो से पीड़ित है उसके मन की व्यथा को बताने की कोशिश की है, मेरे गुरु श्री नीरज गोस्वामी जी के पारस जैसे हाथो ने इसे सवारां है , जो गलतियाँ मुझसे हुई थी उसे उन्होंने दूर किया है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सब से छुप कर रहता था
हर आहट पर डरता था
बाहर से था शेर मगर
खोफ मुझे भी लगता था
भाई के हाथो क्यूँ कर
भाई का घर जलता था
भूल गया था तू शायद
दर्द तिरे मैं सहता था
एक धोखा था प्यार यहाँ
खून तभी तो बहता था
सब से छुप कर रहता था
हर आहट पर डरता था
बाहर से था शेर मगर
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletelatest post गुरु वन्दना (रुबाइयाँ)
कम शब्दों में बहुत ही बड़ी बात कह दी भाई आपने।
ReplyDeleteसुन्दर और अनमोल ग़ज़ल हेतु,
बधाई
वाह बहुत ही सुन्दरता से कही है आपने |
ReplyDeletewedna se bharpoor ....par haiwano ko kahan samajh me aata hai ...
ReplyDeleteचिंगारी की तलाश रहती है दंगे करने वालों को ..जो हुआ बेहद दुखद था.
ReplyDeleteछोटे बहर की ग़ज़ल में आप ने दर्द समेट मन की बात कह दी.नीरज जी के कुशल हाथों में जा कर यह और बेहतर हो गयी है.
वह भाई जी वाह ...
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति है !
बहुत खुबसूरत भावमय रचना !!
ReplyDeleteदंगा फ़ैलाने वालो की कोई जात नहीं होती न रिश्ते......
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति...
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