Tuesday, August 27, 2013

साहब

बहर २२२२२२२२२२२२२२२२ 

मजहब की बातो पर ना जाने क्यों मर मिटते हो साहब 

चाल सियासतदारो की क्यों जान नहीं पाते हो साहब 


जाने अनजाने हर बार बहक जाते हो बातो में इनकी 

जो बीत गयी है उन बातो से कहाँ सिखते हो साहब 



सबको मंजिल तक साथ निभाने का भरोसा दे कर के 

बीच सफ़र में ही क्यों वादा तोड़ चले जाते हो साहब 



झूटी शानो शोकत और पैसो के चक्कर में भी तो

जीवन में अपने प्यारो से ही धोखा खाते हो साहब 



जीवन की राहो में 
तुम गिरकर सम्हल जाते हो लेकिन 

मोहब्बत की गलियों में क्यों हर बार गिरते हो साहब 

Wednesday, August 21, 2013

असफल प्रयास

गजल कैसे लिखते है, उन्ही बातो को आज गजल के रूप में कहने का एक असफल प्रयास कर रहा हूँ, 

बहर २२२२२२२२ 



मिसरा जो पहले आता है
मिसरा ऐ ऊला कहलाता है 

गर मतले के बाद हो मतला
वो हुस्ने मतला बन जाता है

बहरो पर होती है गजले
तभी तो गायक गा पाता है

ऊला में होती आधी बात
शानी ही 
पूरी करवाता है

आता जब शायर का नाम
शेर वो मक्ता बन जाता है 



  

Wednesday, August 7, 2013

बात होती

भूल जाते है
बहुत सी बातो को 
लेकिन तेरी बातो को कभी 
भूलने की बात नहीं होती 

रहते थे व्याकुल 
मिलने को तुझसे
आज मिलकर भी तुझसे
कोई बात नहीं होती

गर मिल जाते तुम
आज मुझको तो
फिर उन पुरानी
मुलाकातों की बात होती

बेवफाई ना करते
अगर तुम मुझसे
तो आज भी होटो पर
तेरी वफ़ा की बात होती 

Sunday, August 4, 2013

गजल

अभी मुझे कुछ ज्यादा मालूम नही है गजलो के बारे में ,जो गलतियाँ की हो कृप्या उन्हें मुझे बताये ताकि मैं फिर उन्हें न दोहराऊ


गजल
बहर २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२

जब आया हूँ तो बात बताकर जाऊँगा
राजो से परदा आज हटाकर जाऊँगा

जितना जब मुझको जिसने तडपाया था,अब
मैं भी उनको उतना सताकर जाऊँगा

तूने मेरी राहों में खार बिछाये थे
एक काँटा मैं भी आज चुभाकर जाऊँगा

हसते गाते गुनगुनाते एक दिन यूँ ही
जो रूठे है उनको मनाकर जाऊँगा

रुलाया है तुमने जुदाई में ,एक दिन
तुमको अलविदा कह रुलाकर जाऊँगा

डॉ शौर्य मलिक  

Friday, August 2, 2013

भगवती चरण वर्मा की कविताये

आज पहली बार भगवती चरण वर्मा की कविताये पढ़ी है , आपके साथ साझा कर रहा हूँ, आज पढ़कर पता चला कि क्यों उनकी इतनी तारीफ करते है सभी 


संकोच-भार को सह न सका
संकोच-भार को सह न सका
पुलकित प्राणों का कोमल स्वर
कह गए मौन असफलताओं को
प्रिय आज काँपते हुए अधर।

छिप सकी हृदय की आग कहीं?
छिप सका प्यार का पागलपन?
तुम व्यर्थ लाज की सीमा में
हो बाँध रही प्यासा जीवन।

तुम करुणा की जयमाल बनो,
मैं बनूँ विजय का आलिंगन
हम मदमातों की दुनिया में,
बस एक प्रेम का हो बन्धन।

आकुल नयनों में छलक पड़ा
जिस उत्सुकता का चंचल जल
कम्पन बन कर कह गई वही
तन्मयता की बेसुध हलचल।

तुम नव-कलिका-सी-सिहर उठीं
मधु की मादकता को छूकर
वह देखो अरुण कपोलों पर
अनुराग सिहरकर पड़ा बिखर।

तुम सुषमा की मुस्कान बनो
अनुभूति बनूँ मैं अति उज्जवल
तुम मुझ में अपनी छवि देखो,
मैं तुममें निज साधना अचल।

पल-भर की इस मधु-बेला को
युग में परिवर्तित तुम कर दो
अपना अक्षय अनुराग सुमुखि,
मेरे प्राणों में तुम भर दो।

तुम एक अमर सन्देश बनो,
मैं मन्त्र-मुग्ध-सा मौन रहूँ
तुम कौतूहल-सी मुसका दो,
जब मैं सुख-दुख की बात कहूँ।

तुम कल्याणी हो, शक्ति बनो
तोड़ो भव का भ्रम-जाल यहाँ
बहना है, बस बह चलो, अरे
है व्यर्थ पूछना किधर-कहाँ?

थोड़ा साहस, इतना कह दो
तुम प्रेम-लोक की रानी हो
जीवन के मौन रहस्यों की
तुम सुलझी हुई कहानी हो।

तुममें लय होने को उत्सुक
अभिलाषा उर में ठहरी है
बोलो ना, मेरे गायन की
तुममें ही तो स्वर-लहरी है।

होंठों पर हो मुस्कान तनिक
नयनों में कुछ-कुछ पानी हो
फिर धीरे से इतना कह दो
तुम मेरी ही दीवानी हो।
 
बस इतना--अब चलना होगा
बस इतना--अब चलना होगा
फिर अपनी-अपनी राह हमें।
कल ले आई थी खींच, आज
ले चली खींचकर चाह हमें
तुम जान न पाईं मुझे, और
तुम मेरे लिए पहेली थीं,
पर इसका दुख क्या? मिल न सकी
प्रिय जब अपनी ही थाह हमें।


तुम मुझे भिखारी समझें थीं,
मैंने समझा अधिकार मुझे
तुम आत्म-समर्पण से सिहरीं,
था बना वही तो प्यार मुझे।
तुम लोक-लाज की चेरी थीं,
मैं अपना ही दीवाना था
ले चलीं पराजय तुम हँसकर,
दे चलीं विजय का भार मुझे।


सुख से वंचित कर गया सुमुखि,
वह अपना ही अभिमान तुम्हें
अभिशाप बन गया अपना ही
अपनी ममता का ज्ञान तुम्हें
तुम बुरा न मानो, सच कह दूँ,
तुम समझ न पाईं जीवन को
जन-रव के स्वर में भूल गया
अपने प्राणों का गान तुम्हें।


था प्रेम किया हमने-तुमने
इतना कर लेना याद प्रिये,
बस फिर कर देना वहीं क्षमा
यह पल-भर का उन्माद प्रिये।
फिर मिलना होगा या कि नहीं
हँसकर तो दे लो आज विदा
तुम जहाँ रहो, आबाद रहो,
यह मेरा आशीर्वाद प्रिये।