गफलत थी कुछ ऐसी की, अपना नाम ए निशान मिटा बैठे , न जाने कब रेत पर उनकी , धुन्द्ली सी तस्वीर बना बैठे ,,,,,,,,,,,,,,,
Monday, July 29, 2013
Wednesday, July 24, 2013
पुस्तक चर्चा -१,,,,,,, मेरे गीत (सतीश सक्सेना )
आज आप सभी के सामने मैं एक पुस्तक चर्चा लेकर आया हूँ, ''मेरे गीत'' सतीश सक्सेना जी द्वारा लिखी गयी ये पुस्तक उनके गीतों का अनमोल संग्रह है , सतीश भाई को तो आप सभी अच्छे से जानते ही है , पुस्तक में सतीश जी ने रिश्तों के महत्व पर बहुत जोर दिया है,हर रिश्ते का महत्व उन्होंने हमें बताया है, माँ बेटे का रिश्ता हो, पिता और पुत्री का,सास ससुर, बहु, भाई, बहन , कुछ पंक्तिया जो माँ के लिए लिखीं है
हम जी न सकेंगे दुनिया में,
माँ जन्मे कोख तुम्हारी से,
जो दूध पिलाया बचपन में,
यह शक्ति उसी से पायी है
जबसे तेरा आँचल छुटा , हम हसना अम्मा भूल गये
हम अब भी आंसू भरे , तुझे टकटकी लगाये बैठे है,
बुजुर्गो की व्यथा लिखते हुए कहा है की -
सारा जीवन कटा भागते ,
तुमको नर्म बिछोना लाते ,
नींद तुम्हारी न खुल जाये
पंखा झलते थे,सिराहने
आज तुम्हारे कटु वचनों से,मन कुछ डावाडोल हुआ है,
अब लगता है तेरे बिन मुझको,चलने का अभ्यास चाहिए,
कुछ और पंक्तिया पढ़े , सुन्दरता से अपनी हर बात को रखा है,
रजनीगंधा सी सुन्दरता ,
फूलो की गंध उठे ऐसे ,
उन भूली बिसरी यादो से,
ये गीत सजे अरमानो के,
मैं कभी सोचता कियो मुझको, संतोष नहीं है जीवन में,
यह कियो उठती अतृप्त भूख ,सूनापन सा इस जीवन में,
रात भर सो गिले में ,
मुझको गले लगाती होगी,
अपनी अंतिम बीमारी में,
मुझको लेकर चिंतित होंगी,
बच्चा कैसे जी पायेगा ,वे निश्चित ही रोती होंगी,
सबको प्यार बाटने वाली,अपना कष्ट छिपाती होगी,
कोई गोता खाये बालो में,
कोई डूबा गहरे प्यालो में,
कोई मयखाने में जा बैठा ,
कोई सोता गहरे ख्वाबो में,
जलते घर माँ को छोड़ चले ,वापिस कोई कियो आएगा?
निष्ठुर लोगो की नगरी में,अब मेरे गीत कोन गायेगा ?
नव वधू के लिए एक गीत है उसकी कुछ पंक्तिया पेश करता हूँ,भाव ही भाव है पूरे गीत में
प्रथम प्यार का ,प्रथम पत्र है ,
लिखता निज मृगनयनी को,
उमड़ रहे जो भाव हृदय में,
अर्पित,प्रणय संगिनी को,
इस आशा के साथ,कि समझे भाषा प्रेमालाप की,
प्रेयसी पहली बार लिख रहा, चिठ्ठी तुमको प्यार की,
कुछ और पंक्तिया माँ के लिये लिखी है, वो भी पढ़े,
सारे जीवन, हमें हसाया,
सारे घर को स्वर्ग बनाया,
खुद तकलीफ उठा कर अम्मा,
हम सबको हसना सिखाया,
तुमको इन कष्टो में पाकर,हम जीते जी मर जायेंगे,
एक हसी के बदले अम्मा , फिर से रोनक आ जाएगी,
वैसे तो इस पुस्तक में बहुत कुछ है पढने को लेकिन सब यहाँ लिख भी नहीं सकता , फिर भी कुछ और पंक्तिया जो मुझे बहुत अच्छी लगी आपके साथ साझा करता हूँ,,
कचरे वालो को बुलवाने
बेटा भेजा कचरे पर
इंटरव्यू देने को आये
सड़े भिखारी कचरे से
देवी जी का दिल भर आया हालत देखी कचरे की
घर में उस दिन बनी ना रोटी यादें आई कचरे की
लेखक की विनती बहुत ही मजेदार है,
मेरे ऊपर धन बरसा दे,
कुछ लोगो को सबक सिखा दे
मेरा कोई ब्लॉग न पढता
ब्लॉग जगत में भोले शंकर
मेरे को ऊपर पंहुचा दे,
मेरा भी झंडा फहरा दे
मेरे आगे पीछे घुमे,दुनिया,
ऐसी जुगत करा दे ,,,,,,,
इस पुस्तक को मंगाने के लिए ज्योतिपर्व प्रकाशन के प्रकाशक भाई अरुण चंद्र रॉय से सम्पर्क कर सकते है उनका फ़ोन नंबर है,09811721147 ,,,,,,,,,,,,,,, सतीश जी से इस नंबर पर बात कर सकते है,,,,,,,,,,, 09811076451,
फ्लिप्कार्ट से मंगाने के लिए इस लिंक पर जाये
पेज संख्या -१२२, मूल्य -१९९
फिर मिलेंगे किसी और पुस्तक की चर्चा के साथ , तब तक के लिए विदा,,,,,,,,,,,,,
Monday, July 22, 2013
गुरु को समर्पित
आज गुरु पूर्णिमा को गुरु की महिमा को बखान करने के लिए कुछ पंक्तिया लिखी है ,वैसे तो जो भी लिखा है, यह कुछ भी नही है,उस गुरु की महिमा को बयां करने के लिए , लेकिन कोशिश की है, अपने गुरु श्री नीरज गोस्वामी जी से मैंने गजल कहना सीखा है, लेकिन गजल को भाव नही दे पाता हूँ, आज ये गजल और ये चंद पंक्तिया अपने गुरु श्री नीरज गोस्वामी जी को समर्पित करता हूँ, वैसे तो इस गजल में बहर के अलावा कुछ नही है, भाव कहने मुझे नही आते, ये पहली गजल है जो मैं कही लिख रहा हूँ,जो गलतियाँ हो आप सब लोग उन्हें माफ़ करके मेरा मार्गदर्शन करे ,
गुरु श्रधा है,
भक्ति है,
शक्ति है,
अलख है,
अगम है,
डूबते का सहारा है,
भोतिक जगत से
न्यारा है,
समुद्र की लहरों में
एक किनारा है,
प्रेम रस है,
दया की मूरत है,
खुदा की नेमत है,
अलोकिक है,
गुरु की लीला
अपरम्पार,
गुरु जैसा न कोई
तारणहार ,,,,
बहर २ २ २ २ २ २ २ २
गजल
तन्हा जीवन ना जाया कर ,
तू हमसे मिलने आया कर ,
दुनिया का हो तुझको कुछ गम,
इस कन्धे सर रख रोया कर,
बातो ही बातो में अब तू ,
मंजर इस दिल का खोला कर,
काली काली इन जुल्फों को,
अब तू,मत यूँ लहराया कर,
नीली मतवाली आँखों से,
शौर्य को ना तडफाया कर,
Tuesday, July 16, 2013
दिल चाहता है
तेरी आरजू ऐसी थी की तुझसे मिलने को ,
दिल चाहता है ,
जिन्दगी को फिर एक नए मुकाम से जीने को ,
दिल चाहता है ,
एक बार फिर वही तड़फ पाने को,
दिल चाहता है ,
गुमान था तेरे बिन जीने का ,लेकिन आज फिर तेरे संग जीने को,
दिल चाहता है ,
बहुत हँस लिया ,आज एक बार फिर तेरी जुदाई में रोने को,
दिल चाहता है ,
बहुत रुसवाई देख ली, आज फिर तेरी वफ़ा को ,
दिल चाहता है ,
क्या कशिश है तुझमे , आज फिर ये मालूम करने को,
दिल चाहता है ,
वो पुराने लम्हों को एक बार फिर जीने को ,
दिल चाहता है ,
मौत के पास आकर , आज फिर तेरे संग जीने को,
दिल चाहता है ,
तेरी आरजू ऐसी थी की तुझसे मिलने को ,
दिल चाहता है ,
Friday, July 12, 2013
रल्धू की सुसराड
आज कुछ हास्य पर लिखने का दिल हुआ, जो दिल में आया लिख रहा हूँ, कृप्या इसे एक हास्य के तोर पर ही ले आभार ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
रल्धु कू आया ख्वाब ,
अक सुसराड में पाड़ रहा वो कबाब,
आँख खुली जब तडके ,
भाज लिया वो अडके ,
एक किलो ली मिठाई ,
आधा किलो जलेबी भी तुलवाई ,
जाकै गाड्डी राम राम,
बोला हम पहुचे धुर धाम ,
सासू थी उसकी कुछ छोली ,
तपाक से नु बोली ,
करण के आया तू हड ,
तेरी बहू तो तेरे घर गड ,
सासू मेरी ,गोर त सुन ल बात ,
छोरी तेरी, मारे मेरे घुस्से लात ,
सासू कु नु सुन के आया गुस्सा ,
मारा घुमा के एक जोरदार घुस्सा ,
रलधु कु कुछ समझ न आया,
बेदम होके उसने गस खाया ,
खुली जो आँख ,
रलधु को होश आया,
तभी घर में सुसरा भी आया,
उसने भी एक सुतरा खूंटा चिपकाया,
भाजन की जो जुगत लगाई ,
साम्ही तै साली की संडल आई ,
अब ना रलधु कु कुछ दिया सुझाई,
भिड़ा तिगडम अपनी जान बचाई ,
देख भाल कै जाइयो सुसराड मै ,
रलधु न या बात सबकू समझाई ...........................
मॊलिक एवं अप्रकाशित
रल्धु कू आया ख्वाब ,
अक सुसराड में पाड़ रहा वो कबाब,
आँख खुली जब तडके ,
भाज लिया वो अडके ,
एक किलो ली मिठाई ,
आधा किलो जलेबी भी तुलवाई ,
जाकै गाड्डी राम राम,
बोला हम पहुचे धुर धाम ,
सासू थी उसकी कुछ छोली ,
तपाक से नु बोली ,
करण के आया तू हड ,
तेरी बहू तो तेरे घर गड ,
सासू मेरी ,गोर त सुन ल बात ,
छोरी तेरी, मारे मेरे घुस्से लात ,
सासू कु नु सुन के आया गुस्सा ,
मारा घुमा के एक जोरदार घुस्सा ,
रलधु कु कुछ समझ न आया,
बेदम होके उसने गस खाया ,
खुली जो आँख ,
रलधु को होश आया,
तभी घर में सुसरा भी आया,
उसने भी एक सुतरा खूंटा चिपकाया,
भाजन की जो जुगत लगाई ,
साम्ही तै साली की संडल आई ,
अब ना रलधु कु कुछ दिया सुझाई,
भिड़ा तिगडम अपनी जान बचाई ,
देख भाल कै जाइयो सुसराड मै ,
रलधु न या बात सबकू समझाई ...........................
मॊलिक एवं अप्रकाशित
Friday, July 5, 2013
मेरा चाँद जमीन पर
साँझ ढले जब,चाँद जमीं पर आता है,
नशा एक खुमारी बन,दिल पर छा जाता है ,
मिलता सुकूँ रूह को अजीब सा,
जब पास मेरे वो आता है,
धीमा-धीमा सा उसकी खुसबू का असर ,
मादकता बन मेरे जेहन में उतर जाता है,
वो अपने नीलगगन से नैनो से ,
मुझको मदहोश कर जाता है,
काली नागिन सी जुल्फों का घनघोर अँधेरा ,
फैले तो दिल रोशन हो जाता है,
वो उसके अधरों की सुनहरी मुस्कान ,
देख हाल मेरा बेहाल हो जाता है,
लम्हा-लम्हा, क्षण-क्षण , बातो में उसकी ,
सवेरा बन 'शब्' को निगल जाता है,,
Wednesday, July 3, 2013
कठिनाई लेखन की
''कवि तो भूखा मरता है, उसे कुछ नही मिलता ,अपना ध्यान काम पर लगाओ ,यूँ शेर-ओ-शायरी करने से जीवन का गुजारा नही चलता ''ये शब्द किसी ने मुझसे कहे है, अब मैं उन सज्जन को किया कहूँ , बस मैंने इतना ही कहा कि मुझे लिखने से आत्मिक शांति मिलती है,मुझे समझ नही आता उन्होंने ऐसा क्यूँ कहाँ ????????? मैं अपने यहाँ आये मरीजो को ये तो नही कहता कि मैं लिख रहा हूँ आप कही और दिखा ले,जब भी खाली समय मिलता हैं उसमे लिख लेता हूँ , और ये अकेले इन सज्जन का ही कहना नही है,बहुत लम्बी फेहरिस्त है ऐसा कहने वालो की,लेकिन मैं भी बड़ा स्पष्ट जवाब देता हूँ,''जब तक जान है कलम तब तक चलती रहेगी,,'' शुरू - शुरू में तो मुझे बहुत गुस्सा आता था,अब उनकी बातो पर हसी आती है,दुनिया ही निराली है, अगर किसी का होंसला नही बढ़ा सकते तो कम से कम नकारात्मक बाते भी न कहे,,,,,
ना डिगा सकेंगे वो होंसला हमारा
हम तो बहुत मुददत से बात जमाये बैठे है ,,,,,
वो खुद को हमारा तथाकथित हमदर्द कहते है,हमारे भले के लिए वो ये सब कहते है,समाज की सोच , विचारधारा ,धारणा को बदलने की ताक़त कलम में होती है, हम वो लिखते है जो समाज में हो रहा है,उसे दर्द ,वेदना, हास्य ,व्यंग्य ,कहानी आदि अनेको रूप में ढालकर समाज के सामने रखते है, बहुत लोग समझते है की हमारे साथ कुछ ऐसा हुआ है, जो हम ये सब लिख रहे है, कभी - कभी ऐसा होता है की हम वो लिखते है, जो हमारे साथ हुआ है,लेकिन बिना कुछ हुए भी हम अपने चारो ओर जो हो रहा है,उसे महसूस करके शब्दों का रूप दे देते है,
मेरा दर्द मुझ सा जाने ,
ज़माने में नही उसको नापने के पैमाने,,,,,
लो अभी एक सवाल और आ गया , मेरा बेटा मेरे पास आया और पूछा की पापा आप किया कर रहे हो , मैं मुस्कराया , इससे पहले मैं कुछ बोलता , जवाब भी उसने खुद दे दिया कि आप कविता लिख रहे हो, कह कर चला गया,उन सज्जन लोगो से तो समझदार ये ही है कि मैं लिख रहा हूँ तो अभी कुछ देर वो मेरे पास नही आयेगा और न ही कोई और सवाल पूछेगा ,,,,मैं बस इतना कहता हूँ की जिन्होंने अभी लेखन की शुरुआत की है ( मैं भी उनमे से एक हूँ,) आप सभी किसी की परवाह किये बिना ''बस लिखते रहे' क्योंकि अगर आपने लिखना बंद कर दिया तो, उन सज्जन लोगो का अगला व्यंग्यपूर्ण सवाल ये होगा कि ,,'''भूत उतर गया कवि बनने का '''
बस इतना ही कहता हूँ अपनी कलम के साथ चिपके रहे,कुछ पंक्तियों के साथ अपनी बात को खत्म करता हूँ, आप सभी की लेखनियो को हार्दिक शुभकामनाये ,
दुनिया नही ये बेदर्द जमाना है,
टोक लगाने का काम इनका पुराना है,
अरे ये किया समझेंगे हमें कभी ,
इनका तो ये दस्तूर पुराना है,
Monday, July 1, 2013
मन की आशा
मन की आशा ,
दिल की पिपासा ,
बुद्धि सहसा ,
विचारे ऐसा ,
आएगा ऐसा,
बदलेगा परिभाषा ,
दिलो सुकूँ ऐसा,
नहीं है निराशा ,
बंजर जमीं में ,
रोपेगा बीज ऐसा,
खिल उठेगी धरती,
खुश होगी प्रकृति ,
जागेंगे अरमान ,
सोयेंगे हैवान ,
फैलेगा उजाला,
मिटेगा अँधियारा,
जहाँ में ऐसा ,
फरिस्तो जैसा,
खूबसूरती से उसकी ,
बदलेगा जहाँ,
अनल , पावक , अग्नि,
धरा ,वसुंधरा ,प्रथ्वी ,
नीर, जल, वारी ,
सा रूप होगा उसका ,
चमक होगी ऐसी,
नीरज ,पंकज ,कमल जैसी ,
व्यक्तित्व होगा ऐसा ,
गगन, अम्बर जैसा ,
बदलेगी फिजां ,
मुस्कुराने से उसके,
होगी ख़ुशी चमन में,
आने से उसके,
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